पहाड़ जैसा ऊंचा आदमी
308 फिट लंबा और 30 फीट चौड़ा पहाड़ काटने के लिए कितना वक्त लग सकता है निश्चित ही टेक्नोलॉजी के इस युग में इस सवाल का जवाब इस बात पर निर्भर करता है कि आप पहाड़ का सीना चीरने के लिए किस मशीन का इस्तेमाल कर रहे हैं
लेकिन अगर यह पूछा जाए कि इस काम को एक ही शख्स को अंजाम देना हो तो कितना वक्त लगेगा शायद यह चकरा देने वाला सवाल होगा लेकिन बिहार के गया जिले की गैलोर गांव के एक मजदूर परिवार में जन्मे एक शख्स ने इसका जवाब अपने बाजू और अपनी मेहनत से दिया उसका नाम दशरथ था
वर्ष 1966 की किसी सुबह जब छेनी हथोड़ा लेकर दशरथ झांसी अपने गांव के पास स्थित पहाड़ के पास पहुंचे तो बहुत कम लोगों को इस बात का पता था कि इस शख्स की दिल में क्या चल रहा है मजदूरी और कभी इधर उधर काम करने वाले उस दशरथ ने जब पहाड़ पर छेनी हथोड़ा चलाना शुरु किया
तो आने जाने वाले राहगीरों के लिए ही नहीं बल्कि गांव के लोगों को भी वह एक हंसी के पात्र बन गए थे जीवन संगीत फागुनी देवी का समय पर इलाज न करा पाने से उसे खो चुके लेकिन दशरथ को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा
धनु के पक्के दशरथ की कड़ी मेहनत 22 साल बाद तक रंग लाई जब उस पहाड़ में एक रास्ता दूसरे गांव तक निकाल दिया आखिर ऐसी क्या बात हुई कि दशरथ को पहाड़ चीरने की धुन सवार हुई दरअसल पहाड़ को जब तक चिरा नहीं गया था
तब तक दशरथ के गांव से सबसे नजदीकी वजीरगंज अस्पताल 90 किलोमीटर पड़ता था दशरथ की पत्नी की तबीयत खराब होने के कारण उसे वहां ले जाने के दौरान ही उसने दम तोड़ दिया था उन्हें लगा कि पहाड़ मैं कोई रास्ता होता तो मैं अपनी पत्नी को वक्त पर अस्पताल ले जाते और उसका इलाज करवा पाता
जिंदगी का 30 वां बसंत पार कर चुके दशरथ ने शायद शेष गांव के निवासियों के मन में दबी इस छोटी सी इच्छा को अपनी जिंदगी का मिशन बना डाला और अपनी पत्नी की मौत से उपजे दुख को एक नई संकल्प शक्ति में तब्दील कर दिया
5 साल तक दशरथ अकेले ही मेहनत करते रहे धीरे-धीरे और लोग भी जुड़ते चले गए वहां एक दानपात्र भी रखा गया था जिसमें लोग चंदा डाल देते थे कई लोग अपने घर से अनाज भी देते थे आज की तारीख में आप कह सकते हैं कि गैलौर से वजीरगंज जाने की असली दूरी को 13 किलोमीटर ला देने वाला यह शख्स एक श्रमिक के प्यार की निशानी है
कुछ साल पहले एक पत्रकार उससे मिलने गया और उनसे पूछा की क्या आप यह पहाड़ तोड़ पाएंगे तब दशरथ ने उनसे कहा कि मैं आपको एक कहानी सुनाता हूं जो उस चिड़िया के बारे में थी जिसका घोसला समुद्र बहाकर ले गया था यह कहानी उस चिड़िया की संकल्प को बयां कर रही थी
जिसके तहत समुद्र द्वारा खोसला ना लौटाने पर चिड़िया ने अकेले ही समुद्र को सुखा देने का संकल्प लिया शुरुआत में उसे पागल करार देने वाली बाकी चिड़िया भी उसके साथ जुड़ गई और फिर विष्णु का वाहन गरुड़ भी इस कोशिशों का हिस्सा बन गया फिर बीच बचाव करने के लिए खुद विष्णु को आना पड़ा
जिन्होंने समुद्र को धमकाया कि अगर उसने चिड़िया का घोंसला नहीं लौटआया तो पल भर में उसे सुखा दिया जाएगा पत्रकार ने जवाब में उससे पूछा कि कहीं वह चिड़िया क्या आप ही हैं इसके जवाब में आंखों में शरारत भरी मुस्कान ली दशरथ ने बात टाल दी थी
पिछले कुछ सालों से दशरथ के बाल बड़े होने के कारण वह साधु जैसे लग रहे थे लेकिन कुछ दिनों के बाद उनके गांव में बरसात ना होने के कारण सारा पानी खत्म हो चुका था और सभी गांव वाले गांव छोड़कर वहां से दूसरे गांव जाकर बस गए थे लेकिन दशरथ ने हार नहीं मानी वह वही रहे
लेकिन 1 दिन उन्हें बहुत जोर की प्यास लगी और वह पानी तलाशने लगे पानी तलाशते तलाशते उन्हें एक पहाड़ के नीचे किसी गड्ढे में थोड़ा पानी मिला वही पानी पीकर अपनी प्यास बुझाई लेकिन उनकी किस्मत ने भी साथ दिया और अगले दिन ही बारिश होने लगी
और उन्होने अपना काम जारी रखा कड़ी मेहनत के बाद उन्हें उस पहाड़ में एक रास्ता बना दिया जिससे उस गांव के लोग फिर उस गांव में वापस आ गए और दशरथ को बहुत सम्मान मिला पहाड़ को हिला देने वाले दशरथ को दिल्ली के प्रधानमंत्री ने अपने पास बुलाया
सन 2007 में उन्होंने अंतिम सांस ली दशरथ हमारे बीच नहीं रहे अपने जीवन का सिलसिला बयान करते हुए उन्होंने एक पत्रकार को शायद इसलिए बताया था कि पहाड़ मुझे इतना ऊंचा कभी नहीं लगता जितना लोग बताते हैं मनुष्य से ज्यादा ऊंचा कोई इंसान नहीं होता
लेकिन अगर यह पूछा जाए कि इस काम को एक ही शख्स को अंजाम देना हो तो कितना वक्त लगेगा शायद यह चकरा देने वाला सवाल होगा लेकिन बिहार के गया जिले की गैलोर गांव के एक मजदूर परिवार में जन्मे एक शख्स ने इसका जवाब अपने बाजू और अपनी मेहनत से दिया उसका नाम दशरथ था
वर्ष 1966 की किसी सुबह जब छेनी हथोड़ा लेकर दशरथ झांसी अपने गांव के पास स्थित पहाड़ के पास पहुंचे तो बहुत कम लोगों को इस बात का पता था कि इस शख्स की दिल में क्या चल रहा है मजदूरी और कभी इधर उधर काम करने वाले उस दशरथ ने जब पहाड़ पर छेनी हथोड़ा चलाना शुरु किया
पहाड़ जैसा ऊंचा आदमी moral story
तो आने जाने वाले राहगीरों के लिए ही नहीं बल्कि गांव के लोगों को भी वह एक हंसी के पात्र बन गए थे जीवन संगीत फागुनी देवी का समय पर इलाज न करा पाने से उसे खो चुके लेकिन दशरथ को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा
धनु के पक्के दशरथ की कड़ी मेहनत 22 साल बाद तक रंग लाई जब उस पहाड़ में एक रास्ता दूसरे गांव तक निकाल दिया आखिर ऐसी क्या बात हुई कि दशरथ को पहाड़ चीरने की धुन सवार हुई दरअसल पहाड़ को जब तक चिरा नहीं गया था
तब तक दशरथ के गांव से सबसे नजदीकी वजीरगंज अस्पताल 90 किलोमीटर पड़ता था दशरथ की पत्नी की तबीयत खराब होने के कारण उसे वहां ले जाने के दौरान ही उसने दम तोड़ दिया था उन्हें लगा कि पहाड़ मैं कोई रास्ता होता तो मैं अपनी पत्नी को वक्त पर अस्पताल ले जाते और उसका इलाज करवा पाता
जिंदगी का 30 वां बसंत पार कर चुके दशरथ ने शायद शेष गांव के निवासियों के मन में दबी इस छोटी सी इच्छा को अपनी जिंदगी का मिशन बना डाला और अपनी पत्नी की मौत से उपजे दुख को एक नई संकल्प शक्ति में तब्दील कर दिया
5 साल तक दशरथ अकेले ही मेहनत करते रहे धीरे-धीरे और लोग भी जुड़ते चले गए वहां एक दानपात्र भी रखा गया था जिसमें लोग चंदा डाल देते थे कई लोग अपने घर से अनाज भी देते थे आज की तारीख में आप कह सकते हैं कि गैलौर से वजीरगंज जाने की असली दूरी को 13 किलोमीटर ला देने वाला यह शख्स एक श्रमिक के प्यार की निशानी है
कुछ साल पहले एक पत्रकार उससे मिलने गया और उनसे पूछा की क्या आप यह पहाड़ तोड़ पाएंगे तब दशरथ ने उनसे कहा कि मैं आपको एक कहानी सुनाता हूं जो उस चिड़िया के बारे में थी जिसका घोसला समुद्र बहाकर ले गया था यह कहानी उस चिड़िया की संकल्प को बयां कर रही थी
जिसके तहत समुद्र द्वारा खोसला ना लौटाने पर चिड़िया ने अकेले ही समुद्र को सुखा देने का संकल्प लिया शुरुआत में उसे पागल करार देने वाली बाकी चिड़िया भी उसके साथ जुड़ गई और फिर विष्णु का वाहन गरुड़ भी इस कोशिशों का हिस्सा बन गया फिर बीच बचाव करने के लिए खुद विष्णु को आना पड़ा
जिन्होंने समुद्र को धमकाया कि अगर उसने चिड़िया का घोंसला नहीं लौटआया तो पल भर में उसे सुखा दिया जाएगा पत्रकार ने जवाब में उससे पूछा कि कहीं वह चिड़िया क्या आप ही हैं इसके जवाब में आंखों में शरारत भरी मुस्कान ली दशरथ ने बात टाल दी थी
पिछले कुछ सालों से दशरथ के बाल बड़े होने के कारण वह साधु जैसे लग रहे थे लेकिन कुछ दिनों के बाद उनके गांव में बरसात ना होने के कारण सारा पानी खत्म हो चुका था और सभी गांव वाले गांव छोड़कर वहां से दूसरे गांव जाकर बस गए थे लेकिन दशरथ ने हार नहीं मानी वह वही रहे
लेकिन 1 दिन उन्हें बहुत जोर की प्यास लगी और वह पानी तलाशने लगे पानी तलाशते तलाशते उन्हें एक पहाड़ के नीचे किसी गड्ढे में थोड़ा पानी मिला वही पानी पीकर अपनी प्यास बुझाई लेकिन उनकी किस्मत ने भी साथ दिया और अगले दिन ही बारिश होने लगी
और उन्होने अपना काम जारी रखा कड़ी मेहनत के बाद उन्हें उस पहाड़ में एक रास्ता बना दिया जिससे उस गांव के लोग फिर उस गांव में वापस आ गए और दशरथ को बहुत सम्मान मिला पहाड़ को हिला देने वाले दशरथ को दिल्ली के प्रधानमंत्री ने अपने पास बुलाया
सन 2007 में उन्होंने अंतिम सांस ली दशरथ हमारे बीच नहीं रहे अपने जीवन का सिलसिला बयान करते हुए उन्होंने एक पत्रकार को शायद इसलिए बताया था कि पहाड़ मुझे इतना ऊंचा कभी नहीं लगता जितना लोग बताते हैं मनुष्य से ज्यादा ऊंचा कोई इंसान नहीं होता
पहाड़ जैसा ऊंचा आदमी
Reviewed by Anand Singh
on
May 12, 2020
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