वीर विक्रमादित्य राजा

एक गांव में एक वीर विक्रमादित्य नाम का राजा रहता था उसका एक नियम था पंडित को जब तक भोजन नहीं करा लेता तब तक खुद भोजन नहीं करता था जिस पंडित को वह भोजन कराते थे वह उसी गांव में रहता था उसके साथ उसकी बीवी भी रहती थी

 एक दिन पंडिताइन पंडित से बोली आप राजा के यहां भोजन करते हैं उसके बदले आपको उनका कोई काम करना चाहिए बिना काम करें किसी क्या भोजन खाना उचित नहीं होता पंडित बोला ठीक है मैं कल ही राजा से कोई काम मांग लूंगा

Vir Vikramaditya Raja kids story


अगले दिन जब राजा पंडित के पास जाता है तो कहता है राजा आप मुझे कोई काम बताइए तब राजा बोले मैं आपसे कैसे काम करवा सकता हूं पंडित बोले नहीं आप मुझे काम दीजिए नहीं तो मैं आपके यहां भोजन नहीं करूंगा तब राजा बोले ठीक है

वीर विक्रमादित्य राजा kids story


 आप हरिद्वार जाओ वहां स्नान करना और मेरे लिए गंगा जल लेते आना फिर पंडित भोजन करने के बाद अपने घर आकर अपनी पंडिताइन को बताता है तब पंडिताइन बहुत खुश होती है और कहती है यह काम तो बहुत अच्छा है लेकिन जब आप हरिद्वार चले जाएंगे तो मैं किस को देखकर भोजन करूंगी

तब पंडित दीवाल में अपनी एक तस्वीर बना देता है और कहते है इसे देखकर तुम भोजन कर लेना इतना बोलकर पंडित हरिद्वार के लिए चल देता है जाते-जाते राजा को बोल देता है कि मैं जा रहा हूं मेरे घर का ध्यान रखना इतना बोल कर चला जाता है

 अगले दिन पंडित के घर आग लग जाती है और पंडिताइन पंडित की तस्वीर को पकड़कर बोलती है पंडित जी चलिए घर में आग लग गई है और पंडित की तस्वीर को पकड़ कर बैठ जाती है और जल के मर जाती है जब यह खबर राजा को मिलती है

 तो राजा कहते हैं अगर पंडित आएगा तो मुझे जरूर सराफ दे देगा तब राजा लाश को मसाला लगवा के रखवा देते हैं कुछ दिनों के बाद जब पंडित आता है तो उसे रास्ते में ही पता चल जाता है कि उसकी पंडिताइन जल के मर गई तब वह राजा के घर पहुंचता है

और कहता है मेरी पंडिताइन कहां है मुझे मेरी पंडिताइन चाहिए तब राजा कहते हैं मरा हुआ इंसान कहां से लाकर दूं आप कहे तो आपको पंडिताइन से भी सुंदर लड़की से आपका विवाह करवा देता हूं लेकिन पंडित बोला कि मुझे मेरी पंडिताइन ही चाहिए तब राजा बोले ठीक है तुम मेरे राजपाट को संभालो मैं तुम्हारी पंडिताइन को लेने जा रहा हूं

जब तक मिल नहीं जाएगी तब तक मैं वापस नहीं आऊंगा तब पंडित बोला ठीक है इतना बोल कर राजा चले जाते हैं चलते चलते रात हो जाती है कुछ दूर पर एक जंगल में एक झोपड़ी को देखकर राजा ने सोचा कि यहां आराम कर लेता हूं जब सुबह होगी तब चलेंगे

झोपड़ी के बाहर एक तखत रखी हुई थी राजा उस तखत पर जाकर लेट जाते हैं तभी एक बुढ़िया के रोने की और कभी हंसने की आवाज सुनाई देती है तब राजा ने उस बूड़िया से पूछा अम्मा यह बताओ आप कभी रोती हो और कभी हंसती हो तब बुढ़िया ने कहा बेटा मैंने सोचा कि मेरा बेटा आ गया इसलिए मैं हंसने लगी जब पता चला कि मेरा बेटा नहीं कोई और आया है तब मैं रोने लगी

 राजा ने पूछा आपका बेटा कहां रहता है तब उस बुढ़िया ने बताया मेरा बेटा एक राजा के पलंग की रखवाली करता था पहले तो आता जाता रहता था लेकिन अब उसे छुट्टी नहीं मिलती ना कोई खबर आती है तब राजा बोला आप चिंता मत करो मैं आपके बेटे को छुट्टी दिलवा दूंगा इतना बोल कर राजा वहां से चल देता है

 और अपने अगिंन कोयलिया दोनों दुत्त को याद करता है दोनों दूत्त हाजिर हो जाते हैं तब राजा उन्हें कहते हैं मुझे उस राजा के पास ले चलो जहां उस बूड़िया का बेटा काम करता है तब वो दोनों दुत्त राजा को उड़ा कर वहां पहुंचा देते हैं जैसे ही राजा महल में जाने की कोशिश करते हैं

 तभी द्वारपाल रोक देते हैं और कहते हैं तुम्हें किससे मिलना है तब राजा बोले जो राजा के पलंग की रखवाली करता है मैं उसका चचेरा भाई हूं उसे जाकर बोलो कि तुम्हारा चचेरा भाई आया है तब द्वारपाल उस लड़के को बताते हैं तब लड़का मन में सोचता है कि मेरा चचेरा भाई कौन है मुझे तो आज तक पता ही नहीं चला

जब वह उस से मिलता है तो राजा उससे पूछते हैं कि तुम घर क्यों नहीं जाते तब वह बोला मुझे छुट्टी नहीं मिलती राजा ने कहा जाओ अपने महाराज से बोल दो तुम्हारे बदले मुझे काम पर रख ले और तुम अपने घर घूम आओ जब तुम लौट के आओगे तो मैं चला जाऊंगा

तब वह महाराज के पास जाकर उन्हें बताता है तब वह कहते हैं ठीक है तुम चले जाओ तब वह लड़का चला जाता है और राजा उसके पलंग की रखवाली करने लगते हैं वहां का राजा रोजाना एक मन सोना दान करता था तब विक्रमादित्य राजा ने सोचा मुझसे बड़ा धनी है जो एक मन सोना रोजाना दान करता है

 तब विक्रमादित्य राजा ने सोचा जरूर कुछ तो बात है एक दिन विक्रमादित्य राजा ने देखा कि यह राजा रात को कहां जा रहा है और उसके पीछे पीछे जाने लगे तब उन्हें देखा कि वह राजा एक जंगल में जा रहे हैं वहां एक झोपड़ी है उसके बाहर एक बड़ी कढ़ाई रखी है उसमें तेल उबल रहा है और देखा कि वह राजा उस कढ़ाई में जाकर कूद जाते हैं और डायन आती हैं उन्हें फूंक-फूंक कर खा जाती है

 और झोपड़े से देवी अमृत लेकर उसके ऊपर एक बूंद गिरा देती है और अपनी थैली से एक मन सोना राजा को देती है यह देखकर विक्रमादित्य राजा वहां से लौट आते हैं कुछ दिनों के बाद विक्रमादित्य राजा जब रात हो जाती है तो अपने दोनों दुत्त को बुलाते हैं और कहते हैं देखो मैं जा रहा हूं तुम इस राजा के ऊपर चढ़कर बैठ जाओ

जब तक मैं लौट के ना आए तब तक इनकी नींद खुली नहीं चाहिए इतना बोल कर विक्रमादित्य राजा चले जाते हैं और उसी कढ़ाई में जाकर कूद जाते हैं और डायन उन्हें फूंक-फूंक कर खा जाती है तब देवी अमृत गिरा कर देती है राजा फिर कढ़ाई में कूद जाते हैं

फिर देवी जिंदा करती है राजा जब तीसरी बार जाते हैं तो देवी रोक देती है और कहती है कि तुम्हें क्या चाहिए मांग लो तब राजा बोला मुझे अमृत का घड़ा चाहिए और तुम्हारी यह सोने की थैली तब देवी उन्हें दोनों चीज दे देती है तब राजा बोले और यह अपना तामझाम लेकर चली जाओ

तब देवी बोली कि तुमने सब कुछ तो ले लिया अब मुझे यहां से क्यों जाने को बोल रहे हो तब राजा बोले अगर तुम यहां रहोगी तो जब राजा आएगा और इस कढ़ाई में कूद जाएगा तो अमृत तो मैं लेकर जा रहा हूं तो तुम उसे जिंदा कैसे करोगी यह बात सुनकर वो वहां से चली जाती है

और विक्रमादित्य राजा महल आ जाते हैं और अपने दोनों दुत्त को भेज देते हैं और कहते हैं जाओ जब मुझे जरूरत होगी तो फिर मैं तुम्हें याद करूंगा जब राजा की आंख खुलती है तो राजा भागते हुए जाते हैं वहां जाकर देखते हैं कि ना तो कोई झोपड़ा है ना तो तेल की कढ़ाई यह देखकर राजा चिंतित हो जाते हैं और भागते हुए अपने महल आकर चुपचाप बिस्तर पर लेट जाते हैं

जब सुबह होती है तो जो दान लेने आते थे वह भीड़ लगाकर खड़े हो जाते हैं द्वारपाल जाकर राजा को कहते हैं महाराज सब लोग सोना लेने आ गए हैं तब राजा ने कहा जाओ उनसे बोल दो आज राजा की तबीयत ठीक नहीं है आज वह दान नहीं करेंगे

तब द्वारपालों ने जाकर उन लोगों से कहा लेकिन जो रोजाना सोना लेकर जाता हो वह भला कैसे मान सकता है तब विक्रमादित्य राजा ने उन राजा से कहा महाराज उठिए नहाए धोए आपको एक मन सोना मैं दूंगा तब राजा ने सोचा यह मेरे पलंग की रखवाली करता है इसके पास एक मन सोना कहां से आएगा

तब राजा बिना मन के नहा धोकर तैयार हो जाते हैं फिर विक्रमादित्य राजा उन्हें वह थैली दे देते हैं और कहते हैं जाइए आप पहले दान कीजिए जब राजा दान करके आते हैं तब विक्रमादित्य राजा से पूछते हैं यह बताओ आप कौन हो तब उन्हेंने कहा कि मैं वीर विक्रमादित्य राजा हूं

तो वह राजा उनसे माफी मांगते हैं और कहते हैं आपने मुझे पहले क्यों नहीं बताया मैंने आपसे अपने पलंग की रखवाली कराई तब विक्रमादित्य राजा बोले कोई बात नहीं अब मैं जा रहा हूं आपकी इजाजत हो तो मैं यह अमृत का घड़ा ले जाना चाहता हूं राजा बोले ठीक है आप ले जाइए

तब विक्रमादित्य राजा बोले अगर वह लड़का आपके यहां काम करने आए तो उसे छुट्टी दे देना इतना कहकर राजा वहां से चल देते हैं कुछ दूर जाकर अपने दोनों दुत्त को याद करते हैं और कहते हैं मुझे अपने घर ले चलो तब दोनों राजा को महल के पास छोड़ देते हैं

जैसे ही राजा अपने महल में जाते हैं जैसे ही पंडित की नजर राजा के ऊपर पहुंचती है वैसे ही पंडित तुरंत राजा से बोले कि मेरी पंडिताइन को लेकर आए तब राजा बोले मुझे थोड़ा आराम तो करने दो लेकिन पंडित नहीं माना और कहता है मेरी पंडिताइन को जल्दी ला कर दो नहीं तो मैं तुम्हें सराफ दे दूंगा

तब राजा ने अपने सिपाहियों को भेजकर लाश मंगवाई और उस पर पूरा अमृत का घड़ा पलट दिया पंडिताइन 16 साल की कुंवारी लड़की बनकर तैयार हो गई तब राजा ने पंडित और पंडिताइन को जाने के लिए आदेश दे दिया उसके बाद से राजा कभी पंडित को भोजन नहीं करा दे
वीर विक्रमादित्य राजा वीर विक्रमादित्य राजा Reviewed by Anand Singh on May 11, 2020 Rating: 5

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